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आम जिंदगी के सुपरहीरो: महिलाएं कैसे खुद को हमेशा अलग-अलग भूमिकाओं में ढाल लेती हैं?

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आम जिंदगी के सुपरहीरो: महिलाएं कैसे खुद को हमेशा अलग-अलग भूमिकाओं में ढाल लेती हैं?

financial planning for women

आज की भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में औरतें न जाने कितने किरदार एक साथ निभा रही हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि वह ही हमारे परिवार की सबसे बड़ी पूंजी है।

आइये थोड़ी और बारीकी से समझते हैं कि कैसे एक महिला एक परिवार की सबसे बड़ी पूँजी है।

हर रोज़ कविता, जो कि एक प्राइवेट स्कूल में टीचर हैं, स्कूल जाने से पहले यह सुनिश्चित करती हैं कि उसके दोनों बच्चे आराम से स्कूल पहुँच जाएं और उसके पति को आफिस के लिए निकले से पहले नाश्ता टेबल पर लगा मिले। यही नहीं, वो इस बात का भी ध्यान रखती हैं कि उसके जाने के बाद उसके सास-ससुर आराम से अपनी योग क्लास के लिए जा सकें। उनकी जिम्मेदरियां यहीं ख़त्म नहीं हो जाती। स्कूल में 6-7 घंटे काम करने के बाद बच्चों का होमवर्क कराना, रात का खाना बनाना और फिर अगले दिन की सारी तैयारियां भी वह रात को बेड पर जाने से पहले ही कर लेती हैं। और ये सब उनका एक दिन का नहीं, बल्कि रोज़ का काम है।

ऐसे में एक पल के लिए सोच कर देखिए कि अगर कविता की अचानक तबियत खराब हो जाये तो?

क्या होंगें उनके घर के हालात?

कौन संभालेगा यह सब?

आप भी सोच में पड़ गए ना?

औरत ही वो कड़ी है, जो पूरे घर को बांध कर रखती है। ऐसे में उसकी इम्पोर्टेंस का अंदाजा लगाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। पर क्या उसको उतनी तवज्जो मिलती है, जिसकी वह हक़दार है?

· घरेलू कामकाज की आर्थिक कीमत

दुर्भाग्यवश, महिलाओं द्वारा घर में किये जाने वाले कामकाज को किसी भी देश की GDP के अंतर्गत शामिल नहीं किया जाता। शायद यही वज़ह है कि आमतौर पर घरों में भी महिला की द्वारा किये गए कामो को कोई ज्यादा महत्ता नहीं दी जाती।

अगर यूनाइटेड नेशन के द्वारा जारी कि गयी एक रिपोर्ट पर ध्यान दिया जाए, तो उसके अनुसार, भारतीय महिलाओं द्वारा किए गए 51% काम को कोई भी आर्थिक लाभ नहीं मिलता है। इसी बात को समर्थन देते हुए लखनऊ में एसोसिएट प्रोफेसर रह चुकीं 62-वर्षीय शाहीना यास्मीन कहती है कि एक माँ और पत्नी के द्वारा किये गए कामों को हमेशा ही नज़र अंदाज़ किया जाता है।

आईये, अब जानते हैं कि एक घर में महिला के योगदान के क्या मायने हैं -

अगर एक महिला सूझ-बूझ से घर चलाना छोड़ दे तो बहुत से घरों को बिखरते ज्यादा देर नहीं लगेगी। घर के हर सदस्य की देख-रेख से लेकर घर के बजट को सम्भालने तक की ज़िम्मेदारी एक महिला के कन्धों पर ही होती है। कुछ परिस्थितियों, जैसे किसी की बीमारी या बच्चों की परीक्षा के समय तो उनकी जिम्मेदारियाँ और भी बढ़ जाती हैं।

ऐसा नहीं है कि अगर किसी घर मे छोटे-मोटे कामों के लिए कोई डोमेस्टिक हेल्प या नौकर उपलब्ध है तो उस घर की महिला पर जिम्मेदारी का बोझ कम होगा। इस हालत में भी उनकी अपनी अलग भूमिका है – जैसे, काम का बटवारा करना, उनकी सैलरी और छुट्टियों का हिसाब रखना, आदि। बात का मूल यह है कि किसी भी हालत में, एक महिला हमेशा ही एक परिवार की रीढ़ की हड्डी होती है, जिसके सहारे सारा परिवार सम्भला रहता है।

ऐसा अक्सर पाया जाता है कि लोग हाउसवाइफ के काम को बहुत सरलता से कम आंक लेते हैं और यही सबसे बड़ी भूल होती है।

· एक सुखी परिवार को बनाने में लगी मेहनत और उसकी कीमत

इसी बात को आगे बढ़ाते हुए आर्गेनाईजेशन ऑफ एकोनोमिक कॉर्पोरेशन डेवेलपमेंट ने साल 2012 में यह बताया कि भारतीय महिलायें एक आम दिन में आदमियों से 94 मिनेट ज्यादा काम करती हैं। साल 2014 में नेशनल सैंपल सर्वे आफिस (NSSO) ने अपनी एक रिपोर्ट में यह दर्शाया है कि हर तीन महिलाओं में से दो महिलायें अपने कैरियर के चरम समय में घर के कामकाजों में उलझी रहती हैं।

यह हमारे समाज की सोच ही है जो कि आर्थिक लाभ पाने वाले कामों को ज्यादा महत्वपूर्ण समझता है और एक घर को सँभालने में लगे अनगिनत प्रयासों को नजरअंदाज कर देता है।

प्रश्न यह नहीं है कि एक घर को बनाने-संवारने में लगे प्रयासों के लिए एक महिला को सैलरी चाहिए कि नहीं, क्योंकि यह उतना ही अनुचित होगा जितना कि प्रकृति को उसके द्वारा हमें प्रदत्त साधनों साधनों जैसे पानी, हवा, वन और ऐसे ही अनगिनत चीजों के लिए सैलरी देना। ना तो इन सब चीज़ों का मूल्य

आँका जा सकता है और ना ही हम इनका ऋण चुका सकते हैं। पर, हम किसी अलग रूप में, जैसे कि पर्यावरण और जल संरक्षण करके कहीं न कहीं उसकी भरपाई की कोशिश कर सकते हैं। ठीक उसी तरह हम एक महिला के द्वारा किये गए अनगिनत प्रयासों, संघर्षों, और त्यागों के मूल्य का आकलन तो नहीं कर सकते, परन्तु हाँ, उनकी सराहना जरूर कर सकते हैं।

तो अब प्रश्न यह आता है कि हम एक महिला के प्रयासों की सराहना कैसे कर सकते हैं?

· प्रयासों की क़ीमत समझना और सरहाना करना।

इसकी शुरुआत उनकी रोज़ के कामो में थोड़ा हाथ बंटाकर की जा सकती है।

दूसरा, आप उनको उनके क़ीमती होने का अहसास करा सकते हैं। उन्हें बताइये कि वो आपके परिवार और आपके लिए कितनी ख़ास है। और सिर्फ बताइये ही नहीं, अपने आचरण से यह जताइए भी। आप उन्हें कोई कार्ड देकर, अच्छा सा गिफ़्ट दे कर या अन्य कई तरीकों से यह जता सकते हैं।

उनकी महत्ता का अनुभव कराने का सबसे अच्छा तरीका है उनका लाइफ इंश्योरेंस कराना। इससे जहाँ एक तरफ इससे वो अपना महत्त्व समझ पाएंगी, वहीँ दूसरी तरफ आप उनके प्रयासों की सराहना करने कई एक सुखद पहल कर सकेंगे।

पर आज भी कई लोगों की सोच यही है कि हाउसवाइफ तो कोई जॉब नहीं करतीं, ना ही घर में पैसे लाती है तो फिर उनको इस सबकी क्या जरूरत है? कई बार होता है कि महिलाएं ही सोचती हैं - हमें जीवन बीमा की क्या ज़रूरत!

हालांकि, असलियत उनकी सोच के बिल्कुल विपरीत है। जैसा कि हम पहले ही समझ चुके हैं कि किस तरह एक महिला अपने प्रयासों से एक घर को संभालती है। ऐसे में, किसी भी सुखद परिवार की कल्पना एक महिला के बिना हो ही नहीं सकती। वो भले ही जॉब करके पैसे न कमाती हो, पर अपनी सूझ-बूझ से बहुत से खर्चे बचाती हैं। अपने घर-परिवार की देख-रेख में कई बार वह अपनी सेहत को भी नज़रअंदाज कर देती हैं। बच्चों को कमाने लायक बनाने में वह किसी से भी अधिक योगदान देती हैं।

आप ही बताइये कि क्या ऐसा नहीं है?

ऐसे में, महिलाओं का लाइफ-इंश्योरेंस उतना ही ज़रूरी है, जितना घर में उपस्थित बाकी किसी सदस्य का। क्या अब आप इस बात से इंकार कर सकते हैं?

जहाँ हम एक तरह प्रगतिशील समाज की बात करते हैं, वही दूसरी तरह एक महिला के प्रयासों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। अब समय आ गया है कि जीवन के हर पहलू में हम महिलायों को साथ ले कर चलें, क्योंकि एक प्रगतिशील समाज का सपना सिर्फ तभी पूरा हो सकता है।

तो चाहे आप एक हँसी-खुशी परिवार को संभालती महिला हैं या फिर अपने जीवनसाथी की प्रयासों को समझते और उनकी सरहाना करने की कोशिश करते उनके पति - आज ही अपना और अपने घर में प्रत्येक महिला का लाइफ-इंश्योरेंस करवाइये। अच्छी बात यह है कि यह एक अच्छे और मनपसंद गिफ्ट ख़रीदने से ज्यादा आसान है, क्योंकि:

· आप इसे घर बैठे करवा सकते हैं।

· यह हर जरूतर और वर्ग के हिसाब से बनाया गया है। आप अपनी क्षमता के अनुसार इसका चयन कर सकते हैं।

AN Feb 98/18